
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने एक बार साफ किया है कि है कि स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय जैसे शिक्षा संस्थान उपभोक्ता संरक्षण क़ानून के दायरे में नहीं आते. NCDRC ने इस मुद्दे पर भ्रम दूर कर दिया है. साथ ही चंडीगढ कंज्यूमर स्टेट कमीशन के उस आदेश को उलट दिया है जिसमें OXL स्कूल ऑफ मीडिया को एक छात्र को मुआवजा देने के लिए कहा गया था. ये स्कूल कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी से मान्यता प्राप्त है. इस छात्र ने वादे के मुताबिक वोकेशनल स्किल्स की डिग्री ना देने के लिए स्कूल को ज़िम्मेदार ठहराते हुए चंडीगढ़ कंज्यूमर स्टेट कमीशन का दरवाजा खटखटाया था.
चंडीगढ़ कंज्यूमर स्टेट कमीशन ने इस दलील को नहीं माना था कि स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय उपभोक्ता संरक्षण क़ानून के दायरे में नहीं आते हैं. OXL स्कूल ऑफ मीडिया के वकील पंकज चांदगोटिया ने दलील दी थी कि 'NCDRC के हालिया फैसले के मुताबिक शिकायतकर्ता उपभोक्ता की परिभाषा के दायरे में नहीं आता. चांदगोटिया के मुताबिक शिक्षा कोई कमोडिटी (जिंस) नहीं है और न ही शिक्षा संस्थान किसी तरह की सेवा देते हैं, इसलिए दाखिले का मसला, फीस आदि के मामले में सेवा में खामी का सवाल नहीं है. इसलिए ऐसे मामलों को उपभोक्ता संरक्षण कानून, 1986 के तहत उपभोक्ता फोरम से नहीं सुलझाया जा सकता.'
इस पर चंडीगढ़ कंज्यूमर स्टेट कमीशन ने कहा था, ‘उपरोक्त मामले में कहा जा सकता है कि शिक्षा संस्थान OXL स्कूल ऑफ मीडिया वैधानिक संस्था नहीं है बल्कि सिर्फ कारोबारी प्रतिष्ठान है. इसलिए अधिवक्ता की दलील में मेरिट नहीं है इसलिए उनका स्टैंड खारिज किया जाता है.’
OXL स्कूल ऑफ मीडिया ने इसके बाद NCDRC में पुनर्विचार याचिका दाखिल की. चांदगोटिया ने इंगित किया कि शिकायतकर्ता की डिग्री जो लंबित है वो कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी, मैसुरु की ओर से दी जानी है. शिकायतकर्ता की डिग्री इसलिए पूरी नहीं हो सकी क्योंकि यूजीसी ने कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी के लॉन्ग डिस्टेंस शिक्षा कोर्सेज़ पर रोक लगा दी थी. चांदगोटिया के मुताबिक चंडीगढ़ स्टेट कमीशन की इस व्यवस्था में त्रुटि है कि OXL को वैधानिक नियमन या समर्थन हासिल नहीं है.
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NCDRC ने चांदगोटिया की दलील को स्वीकार करते हुए कहा कि ‘छात्र ने मल्टीमीडिया डिप्लोमा और 3D एनिमेशन, विज़ुअल इफेक्ट्स, वीडियो, एडिटिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग में दाखिला लिया जो वोकेशनल ट्रेनिंग की परिभाषा में आते हैं. ये प्रोग्राम कर्नाटक स्टेट ओपन यूनिवर्सिटी से मान्यता प्राप्त हैं और किसी भी प्रोग्राम को हटा देना उपभोक्ता मंच के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है.
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NCDRC ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि वोकेशनल कोर्स वो होते हैं जिनमें पढ़ाई नियमित आधार पर नहीं होती है. हालांकि ये विभिन्न क्षेत्रों में विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में मददगार होते हैं. इऩ्हें रोजगार परक शिक्षा भी माना जा सकता है जिसमें युवाओं को विभिन्न नौकरियों और कौशल विकसित करने में मदद मिलती है. कोचिंग सेंटर्स को इससे अलग माना गया क्योंकि वो ‘शिक्षा संस्थानों’ की परिभाषा के दायरे में नहीं आते इसलिए वो उपभोक्ता संरक्षण कानून, 1968 के दायरे में आते हैं. अगर कोचिंग सेंटर्स सर्विस प्रोवाइडर्स हैं और उनकी तरफ से कोई खामी सामने आती है तो वो उपभोक्ता मंच के अधिकार क्षेत्र में आती है.